Uttrakhand Janmanch to celebrate
World Environment Day as black day
World Environment Day as black day
Uttrakhand
Janmanch hails the arrest of G.D. Agarwal. The regional outfit demanded to
impose ban on the entry of Mr Agarwal in the State . Janmanch also decided to celebrate World Environment
Day as black day. Janmanch said that anti people environment laws have made the
life of hill people miserable and more difficult. Janmanch told that the
forests of the state must be returned to the people of Uttrakhand because
Central and state government failed to save the forests .
Uttrakhand Janmanch’s Secretary General Rajen
Todariya was addressing a press conference in hotel Drona in Dehradun. He welcomes
the government’s decision of arresting G.D. Agarwal. \Todariya said that a ban
must be imposed on the entry of Mr Agarwal in Uttrakhand. He warned that Mr
Agarwal’s entry may lead a chain of reactions in the local people. Uttrakhand
Janmanch announces that the regional outfit would celebrate world environment
day as black day throughout the state. He said that the central idea of Chipko movement was to
assert the people’s right over forests.
Gaura Devi ,who led this movemwnt from the front, said “Jangle hamare hgain,in par haq hamara hai” i.e we
have exclusive rights over forests. The roar of lioness of hills was suppressed by the
sarvodyan leadership and media and the movement for the ownership of forests
has been diverted in to the movement of environment . It was a coup planned by
the sarvodayees. Uttrakhand hills. Janmanch Secretary Gen said that the anti
people environment laws was a result of that environment movement. The people
of hills are thrown out of the forests by the Central Government . Rajen
Todariya said that the government’s management failed miserably and forest
bureaucracy is involved in rampant corruption. He said that the time has come
to return back the ownership of forests to the people. Janmanch declared that
Janmanch will violate the forest laws in Gandhian style of “ Namak Satyagrah”
in coming year at Devaal in district Chamoli.
विश्व पर्यावरण दिवस को काला दिवस
के रुप में मनायेंगेः जनमंच
उत्तराखंड जनमंच ने जीडी अग्रवाल को गिरफ्तार करने के राज्य के कदम को उचित ठहराते हुए कहा है कि किसी एक व्यक्ति को राज्य की कानून व्यवस्था के लिए खतरा नहीं बनने दिया जा सकता। जनमंच ने पांच जून को आयोजित होने वाले विश्व पर्यावरण दिवस को काला दिवस के रुप में मनाने का ऐलान करते हुए कहा है कि उत्तराखंड में पर्यावरण आंदोलन को मुनुष्य विरोधी विचार में बदल दिया गया है। उन्होने कहा है कि कुछ अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग एजेंसियां, वन विभाग की नौकरशाही और उत्तराखंड विरोधी ताकतें पर्यावरण आंदोलन को उत्तराखंड के लोगों के बुनियादी हितों और नैसर्गिक अधिकारों के खिलाफ इस्तेमाल कर रही हैं। जनमंच ने मांग की है कि पिछले लगभग 150 सालों में केंद्र और राज्य सरकारें वनों और वनवासियों के हितों की रक्षा करने में विफल रही हैं इसलिए वनों का स्वामित्व और प्रबंधन वापस गांव के लोगों को सौंप दिया जाना चाहिए।
आज यहां आयोजित एक प्रेस सम्मेलन में उत्तराखंड जनमंच के प्रमुख महासचिव राजेन टोडरिया ने जीडी अग्रवाल को गिरफ्तार करने के निर्णय की सराहना करते हुए कहा है कि जीडी अग्रवाल श्रीनगर और कीर्तिनगर क्षेत्र में कानून,व्यवस्था और शांति के लिए बड़ा खतरा बन गए थे। जनमंच ने राज्य सरकार से मांग की है कि जीडी अग्रवाल के उत्तराखंड प्रवेश पर पाबंदी लगाई जाय। उन्होने चेताया कि जीडी अग्रवाल यदि अब राज्य में घुसे तो इसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया होगी। जनमंच नेताओं ने कहा कि लछमोली में रह रहे भरत झुनझुनवाला के कार्यकलापों के कारण इस पूरे क्षेत्र के लोगों में भारी गुस्सा और तनाव के हालात हैं। उन्होने कहा कि श्री झुनझुनवाला की सुरक्षा के नजरिये उन्हे भी एहतियात के तौर पर उस क्षेत्र से हटा दिया जाना चाहिए। जनमंच ने भरत झुनझुनवाला से भी आग्रह किया है कि इस इलाके में शांति बनाए रखने के लिए उन्हे खुद ही वहां से चला जाना चाहिए। जनमंच ने कहा है कि मौजूदा हालातों में उनकी हठधर्मिता से हालात बिगड़ सकते हैं। उत्तराखंड जनमंच के नेताओं ने आगामी पांच जून को काला दिवस के रुप में मनानें का ऐलान किया है। उन्होने कहा कि जन विरोधी पर्यावरण व वन्य जंतु कानूनों और जंगल पर सरकारी कब्जे के खिलाफ विश्व पर्यावरण दिवस को ‘‘काला दिवस’’ के रुप में मनाया जाएगा। विश्व पर्यावरण दिवस को काला दिवस के रुप में इसलिए मनाना पड़ा रहा है कि पर्यावरणवादी संगठनों,वन विभाग के अफसरों और वाइल्ड लाइफ विभाग के रवैये ने पहाड़ के लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है। उन्होने कहा कि हम विश्व पर्यावरण दिवस का विरोध कर मनुष्य विरोधी पर्यावरण विचारधारा पर देश और दुनिया का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। जनमंच का कहना है कि मनुष्य पर्यावरण का अनिवार्य और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। मनुष्य के बिना पर्यावरण की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए पर्यावरण की विचारधारा के केंद्र में सबसे पहले मनुष्य ही होना चाहिए । जनमंच नेंताओं ने कहा कि उत्तराखंड में पर्यावरण आंदोलन का इस्तेमाल पहाड़ी जनता को उसके प्राकृतिक अधिकारों से वंचित करने और उनके संसाधनों को छीनने में किया जा रहा है। सन् 1865 में देश में पहला वन कानून लागू हुए 147 साल हो चुके हैं। ब्रिटिश सरकार ने इस दिन से जंगल पर जनता के अधिकारों को छीनने की मुहिम शुरु कर दी थी। लेकिन इन 147 सालों में केंद्र औैर राज्य की सरकारों ने पहाड़ के लोगों को वनों से पूरी तरह से बेदखल कर दिया है। जनमंच नंताओं ने कहा कि वन विभाग की नौकरशाही खरबों रुपए खर्च करने के बावजूद न तो जंगलों की सुरक्षा कर सकी और न ही वह वनों की गुणवत्ता को बेहतर कर पायी । केंद्र सरकार ने जनविरोधी पर्यावरण कानून बनाकर ग्रामीण जनता को जंगलों और वन्य जंतुओं के खिलाफ खड़ा कर दिया है। मिश्रित जंगल कम हो रहे हैं, आग लगने की घटनायें बढ़ गईं, वनों की जैव विविधिता खतरे में पड़ गई है । इससे खेतों पर जंगली जानवरों के हमले बढ़ गए हैं। जनमंच नंेताओं ने कहा है कि वनों के प्रबंधन में वन विभाग पूरी तरह से विफल रहा है और उसकी गिनती राज्य के भ्रष्टतम विभागों में होने लगी है। इसके चलते पहाड़ में जंगल ही खतरे में नहीं हैं बल्कि खेती और अर्थव्यवस्था भी संकट में पड़ गई है। जनमंच केंद्र और राज्य सरकार से मांग करता है कि लोगों को उनके जंगल वापस लौटाये जांय। जनमंच ने कहा कि यदि जंगल जनता को वापस नहीं लौटाए गए तो जनमंच गांधीजी के नमक कानून तोड़ने की तर्ज पर वन कानून तोड़ने के लिए जन अभियान चलाएगा। इसके तहत सबसे पहले जड़ी बूटी संग्रह और बेचने का काम गांव के लोग अपने हाथों में लेंगे और खुले बाजार में अंतराष्ट्रीय कीमतों पर वनोपज बेचेंगे। इससे गांवों से पलायन भी रुकेगा और तस्करी भी। जनविरोधी पर्यावरण कानूनों का उदाहरण देते हुए जनमंच नेताओं आरोप लगाया कि देहरादून की डीएफओ मीनाक्षी जोशी के पूर्वाग्रह के कारण इस इलाके पचास हजार लोग चार साल से गैस के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
जंगलों को गांव वालों को वापस लौटाने और जनविरोधी पर्यावरण कानून रद्द करने की मांग को लेकर जनमंच पांच जून को कालेझंडों के साथ वन विभाग के राज्य मुख्यालय पर प्रदर्शन करेगा। इसे चिपको आंदोलन की प्रयोगशाला रहे पीपलकोटी, चैरास, चंबा और रानीपोखरी समेत कई स्थानों पर जनमंच कार्यकर्ता काले झंडों के साथ प्रदर्शन करेंगे और जनता के जंगल वापस लौटाने की मांग करेंगे। जनमंच ने राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम लोगों से अपील की है कि वे पांच जून को ब्लैक बैज या काली पट्टी बांधकर काला दिवस मनायें। पत्रकार सम्मेलन में जनमंच के प्रमुख महासचिव राजेन टोडरिया, प्रांतीय उपाध्यक्ष आनंद चंदोला, आदित्य बडोनी, प्रदेश सचिव मदन सिंह दानू ,प्रदेश प्रवक्ता शशि भूषण मैठाणी, मीडिया प्रभारी शिवानंद पांडे, युवा जनमंच के प्रदेश प्रभारी अरुण डिमरी, उत्तराखंड महिला जनमंच की महानगर महामंत्री उर्मिला पंत व देहरादून जिला शाखा के कार्यकारी अध्यक्ष सुबोध ढ़ौंडियाल मौजूद थे।
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