Thursday, May 31, 2012

Be A member of Uttrakhand Janmanch and Join the movement of change in Uttrakhand


              उत्तराखंड जनमंच के सदस्य बनें और
       उत्तराखंड में पहाड़ी लहर के हिस्सा बनें

उत्तराखंड राज्य के आर्थिक,प्राकृतिक और रोजगार के साधनों पर पहाड़ के लोगों के कब्जे के लिए चल रही लड़ाई के हिस्सेदार बनें। उत्तराखंड जनमंच की सदस्यता लें। यह एक बड़ा जन आंदोलन हैं जिसमें हमारी सांस्कृतिक पहचान से लेकर आर्थिक वर्चस्व तक के सारे सवाल निहित हैं। इस आंदोलन को आप सबके सहारे,समर्थन और सहयोग की जरुरत है। आईए! जनमंच के साधारण, वार्षिक,द्विवार्षिक,पंचवर्षीय,विशिष्ट,आधार और संरक्षक सदस्य बनें। आप दस रुपए महीने, एक हजार से लेकर पांच हजार महीने या एकमुश्त 21 हजार,51 हजार या एक लाख एक हजार रु0 देकर भी सदस्य बन सकते हैं। विस्तृत जानकारी के लिए uttarakhandjnmanch@gmail.com या मोबाइल न0 919412996811 पर संपर्क करें। सभी सहयोग करने वाले सदस्यों को पूरी पारदर्शिता के साथ हर माह जनमंच की आय-व्यय का हिसाब मेल द्वारा भेजा जाएगा और इसे जनमंच की निर्माणाधीन साइट पर भी उपलब्ध कराया जाएगा।

News Room : Uttrakhand Janmanch





            Uttrakhand Janmanch holds
 demonstration at G.D.Agarwal's residence
Uttrakhand Janmanch today again took an agressive step to storm into the campus of the house where G.D.Agarwal is residing. Janmanch hold a aggressive demonstration shouting slogans," Bol pahadi hallabol" Janmanch warned district administration if G.D.Agarwal woun't be arrested within 3 days, Janmanch will enter into the house and forcefully take him away from Uttrakhand. Janmanch leader told District Magistrate of Tehri Garhwal that the people of Uttrakhand are not ready to tolerate the presence of G.D.Agrawal even for a singal minute. Janmanch alleges that the residence of Bharat Jhunjhunwala has become the epicentre of anti pahadi activities. He is disturbing the peace and harmony of the region. Janmanch advised Jhunjhunwala to leave Lachhmoli or be ready to face the consequences.
Janmanch also declared that janmanch and Chauraas Vikash Sanghrash Samiti will bloc the national highway at Lachhmoli on 4th June. 

 उत्तराखंड  जनमंच ने जीडी अग्रवाल पर हल्ला बोला 

उत्तराखंड जनमंच के नेतृत्व में आज कीर्तिनगर के निकट लछमोली में ठहरे जीडी अग्रवाल के आवास पर  प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शनकारियों ने ‘‘ बोल पहाड़ी हल्ला बोल, जीडी अग्रवाल पर हल्ला बोल’’ के नारे लगाते हुए  भरत झुनझुनवाला के आवास पर हल्ला बोल दिया। जनमंच का एक कार्यकर्ता तो आवास के कैंपस में भी घुस गया। उसे देखकर अपने अवास के आंगन में बैठे भरत झुनझुनवाला और जीडी अग्रवाल भीतर भाग गए और उन्होने चटखनी अंदर से बंद कर दी। वहां मौजूद एक व्यक्ति के शोर मचाने के बाद पहुंची पुलिस ने जनमंच कार्यकर्ता को जबरन बाहर धकेलकर उसे वापस सड़क पर लौटा दिया। जनमंच कार्यकर्ताओं के टिहरी,चमोली और देहरादून से लछमोली पहुंचने की खबर से खबरदार हो चुके प्रशासन ने भरत झुनझुनवाला के आवास के बाहर बड़ी संख्या में पुलिस तैनात कर दी थी। उत्तराखंड जनमंच के इस प्रदर्शन में चैरास विकास संघर्ष समिति, पीपलकोटी परियोजना संघर्ष समिति और टिहरी विस्थापित संघर्ष समिति ने भाग लिया। प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व राजेन टोडरिया, शशिभूषण भट्ट, दीपक पोखरियाल, शिवानंद पांडे,आनंद चंदोला, प्रतापसिंह भंडारी, विजयंतसिंह निजवाला, सतीश थपलियाल कर रहे थे।
उत्तराखंड जनमंच ने घटना स्थल पर पहुंचे जिलाधिकारी टिहरी से कहा कि आज का प्रदर्शन सांकेतिक था और सरकार को चेतावनी देने के लिए आयोजित किया गया है। जनमंच ने स्पष्ट किया कि जनमंच जेडी अग्रवाल की की फौरन गिरफ्तारी चाहता है। जनमंच नेताओं ने कहा कि उनका संगठन किसी भी बाहरी व्यक्ति को पहाड़ के लोगों को चुनौती देने की इजाजत नहीं देगा। उन्होने जिला प्रशासन को तीन दिन का समय देते हुए कहा कि यदि तीन जून तक जेडी अग्रवाल को गिरफ्तार कर उत्तराखंड के बाहर नहीं भेजा गया तो 4 जून को उत्तराखंड जनमंच और चैरास विकास संघर्ष समिति मिलकर जेडी अग्रवाल को जबरन उठाकर उत्तराखंड से बाहर कर देंगे। उन्होने कहा कि अब प्रशासन को तय करना है कि वह पहाड़ के लोगों पर लाठीगोली चलाए या जेडी अग्रवाल को उत्तराखंड से खदेड़े। जनमंच ने यह भी ऐलान किया है कि चार जून को लछमोली में अनिश्चितकालीन चक्का जाम किया जाएगा। जनमंच ने भरत झुनझुनवाला के कारनामों पर तीखी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा है कि लछमोली में झुनझुनवाला का घर पहाड़ विरोधी तत्वों का मुख्यालय बन गया है। जनमंच ने ऐलान किया कि भरत झुनझुनवाला को भी लछमोली में रहने की इजाजत नहीं दी जाएगी। यदि झुनझुनवाला ने लछमोली नहीं छोड़ा तारे उनके आवास पर जनमंच कब्जा कर लेगा।

Wednesday, May 30, 2012

News Room: Uttrakhand Janmanch


                  
     Janmanch warned G.D.Agarwal of serious consequences 
Uttrakhand Janmanch expressed its deep anguish over G.D.Agarwal's arrival at Lachhmoli near Srinagar. Janmanch accused Agarwal for inciting violence in the hills. In a press statement released by Secretary General of Janmanch,  Rajen Todariya said that the people of Uttrakhand are not ready to tolerate such incitement. He warned of serious consequences. Janmanch leader said that the workers of Janmanch will forcefully sent back mrG.D.Agarwal. He said that our silence can not be meant as cowardliness. 
                    
                    जनमंच के ऐलान से लछमोली में
                   जीडी अग्रवाल से टकराव की आशंका

उत्तराखंड जनमंच ने जीडी अग्रवाल के श्रीनगर के करीब लछमोेली में उपवास पर बैठने पर तीखी प्रत्ििरया व्यक्त करते हुए कहा है कि जीडी अग्रवाल पहाड़ की जनता को ललकार रहे हैं। जनमंच ने लछमोली मार्च का ऐंलान करते हुए कहा है कि टिहरी, चमोली, उत्तरकाशी और देहरादून से जनमंच कार्यकर्ता लछमोली में जमा होंगे और जीडी अग्रवाल का बोरिया बिस्तर बांधकर पहाड़ से खदेड़ देंगे। जनमंच ने पीसीआई के रवि चोपड़ा और भरत झुनझुनवाला पर आरोप लगाया कि वो पहाड़ में उपद्रव के हालात पैदा करना चाहते हैं। उन्होने कहा कि भरत झुनझुनवाला और रवि चोपड़ा को भी पहाड़ के खिलाफ उनकी साजिशों का जवाब जल्द ही दिया जाएगा। 
उत्तराखंड जनमंच ने जीडी अग्रवाल के खिलाफ अपने आक्रामक तेवरों का ऐलान करते हुए कहा है कि जीडी अग्रवाल को पहाड़ में नहीं बर्दाश्त किया जाएगा। आज यहां जारी एक प्रेस बयान में उत्तराखंड जनमंच के प्रमुख महासचिव राजेन टोडरिया ने कहा कि जनमंच के कार्यकर्ता जीडी अग्रवाल पर हल्ला बोल के लिए तैयार हैं। उन्होने कहा कि टिहरी,उत्तरकाशी और चमोली व श्रीनगर की शाखाओं को तैयारी करने के लिए कह दिया गया है। उन्होने कहा कि जनमंच जीडी अग्रवाल के नाटक का सदा के लिए पटाक्षेप कर देगा। उन्होने कहा कि जनमंच के लोग लाठी गोली खाने को तैयार हैं लेकिन किसी कीमत पर भरत झुनझुनवाला और जीडी अग्रवाल को पहाड़ में नहीं रहने दिया जाएगा।उन्होने कहा कि यदि जीडी अग्रवाल पहाड़ की धरती को खून से लाल करना चाहते हैं पहाड़ के लोग इसके लिए भी तैयार हैं। उन्होनेकहा कि जनमंच अहिंसक और शांतिपूर्ण विरोध में यकीन रखता है लेकिन जीडी अग्रवाल और भरत झुनझुूनवाला हिंसा भड़काना चाहते हैं। जनमंच नेता  ने कहा कि जनमंच की महिला और युवा कार्यकर्ता कभी भी लछमोली में जीडी अग्रवाल पर धावा बोल सकती हैं। उन्होने सरकार पर आरोप लगाया कि वह जानबूझकर पहाड़ में हालात खराब करना चाहती है इसलिए वह जीडी अग्रवाल को पहाड़ लेकर आई है। उन्होने कहा कि जीडी अग्रवाल स्वामी स्वरुपानंद से निर्देशित हैं और स्वरुपानंद चूंकि कांग्रेसीहैंइसलिए इस पूरी खुराफात में कांग्रेस का हाथ है। उत्तराखंड जनमंच ने लछमोली के निकट के क्षेत्रों के सभी निवासियों से अपील की है कि वे भी लछमोली पहुंच कर जनमंच के नेंतृत्व में जीडी अग्रवाल और उनके संरक्षकों को सबक सिखायें। 

Tuesday, May 29, 2012

Uttrakhand Janmanch's Manifesto on Water Rights


 Uttrakhand Janmanch has released its final draft on water rights. Janmanch stressed that thepeople of hills of Uttrakhand has exclusive rights over each and every drop of Ganga and its tributaries . Janmanch warned that nobody can deprive them to use  their water resources for the welfare of the people. Janmanch condemns Central Government for voilating  the federal structure of the constitution . Janmanch said that central Govt's decisions about Ganga and hydro projects are uncalled for and clear violation of Federal laws as Water is declared state subject in the constitution of India.
                      
              गंगा की हर बूंद पर हक हमारा है

 लोकसभा में गंगा पर हुई बहस में मुलायम सिंह के खास आदमी और समाजवादी पार्टी के सांसद रेवतीरमण सिंह ने कहा कि यदि गंगा में बिजली प्रोजेक्ट बने तो यूपी बिहार में पानी कम हो जाएगा। यह झूठ है पर रेवतीरमण सिंह ऐसा कहकर यूपी और बिहार के लोगों को पहाडियों़ के खिलाफ भड़का रहे हैं। वे पहाड़ के लोगों को डराना भी चाह रहे थे ताकि वे गंगा,गाड,गधेरों से पीने के पानी,सिंचाई और बिजली के लिए प्रोजेक्ट न बनायें। मित्रों! आपके पानी पर कब्जा करने के लिए मैदानी क्षेत्रवादी संतों-महंतों,शंकराचार्यों और राजनीतिक नेताओं ने उत्तराखंड के खिलाफ जलयुद्ध छेड़ दिया है। आज आपने जल स्त्रोतों पर अपने प्राकृतिक अधिकार की रक्षा नहीं की तो इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा। पहले उन्होने आपसे आपके जंगल छीने, अब पानी छीन रहे हैं और इसके बाद वे आपसे आपकी जमीन छीनकर आपको अपने ही देश में शरणार्थी बना देंगे। 
               
                                        जल अधिकार घोषणापत्र

उत्तराखंड जनमंच की साफ नीति है कि जल,जंगल और जमीन उत्तराखंड की जनता के संसाधन हैं। इन पर उनका प्राकृतिक अधिकार है ।  हमारा साफ कहना है कि पनबिजली परियोजनाओं से आने वाली समृद्धि पर पहला हक स्थानीय लोगों का है। दूसरा हक राज्य सरकार है और तीसरा हक देश का है। जनमंच पनबिजली उत्पादन के क्षेत्र में निजी कंपनियों के प्रवेश का विरोधी है। जनमंच भारी विस्थापन करने वाले बांधों और उन जल विद्युत परियोजनाओं का विरोधी है जो स्थानीय लोगों को दीर्घकालीन लाभ नहीं दे पा रही है। लेकिन जनमंच पनबिजली परियोजनाओं को लेकर विदेशी फंडिंग एजेंसियों के यूरोपीय हित वाले एजेंडे के खिलाफ है। जनमंच का मानना है कि जल संसाधन राज्य के अधिकार क्षेत्र में आते हैं इसलिए केंद्र सरकार, बाहरी राज्यों, व्यक्तियों,संगठनों और अन्य राजनीतिक शक्तियों को इसमें दखल देने का अधिकार नहीं है। ऐसे लोग और संस्थायें जिनकी निष्ठायें उत्तराखंड के लोगों के प्रति न होकर विदेशी ताकतों, बाहरी राज्यों, कारोबारियों, निगमों के प्रति है वे  उत्तराखंड के विकास का एजेंडा तय नहीं कर सकते। उत्तराखंड के लोगों का भाग्य दिल्ली,लखनऊ, राजस्थान,बनारस या यूरोपीय व अमेरिकी शहरों में नहीं लिखा जा सकता। अपना भाग्य तय करना इस राज्य के लोगों का अधिकार है और इसमें कोई भी दखल पूरी अस्वीकार्य और उपनिवेशवादी मानसिकता से प्रेरित है। उत्तराखंड जनमंच का मानना है कि पूरी दुनिया में तेल के बाद जल सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है। इस पर कब्जे के लिए बड़ी ताकतें साजिश कर रही हैं। पहाड़ के लोगों के जल स्त्रोतों पर भी बाहरी ताकतों की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। गंगा को लेकर चल रहा पूरा आंदोलन मैदानी राज्यों और संगठनों द्वारा पहाड़ के लोगों को अपने पानी का उपयोग करने से रोकने के लिए है। धर्म,आस्था और पर्यावरण की आड़ में चलाए जा रहे इस आंदोलन का लक्ष्य यूपी और बिहार समेत मैदानी राज्यों के लिए पहाड़ का पूरा पानी आरक्षित कराना है। मुलायम सिंह यादव के खास और समाजवादी पार्टी के सांसद रेवती रमण सिंह ने लोकसभा में हुई बहस में साफ कहा कि पहाड़ में बिजली प्रोजेक्ट बनने से यूपी और बिहार को नुकसान होगा। विदेशी एजेंसियों और बाहरी संगठनों से करोड़ों रु0 कमाने वाले कुछ जयचंद पैसे के लिए अपने लोगों के हितों के साथ गदृदारी कर रहे हैं। पर्यावरण के नाम पर करोड़ों रुपए की संपत्ति बटोर चुके ऐसे लोग पहाड़ी जनता का हित बाहरी लोगों के पास बेच रहे हैं। इसलिए यह धार्मिक मामला नहीं है बल्कि मैदानी संगठनों और राज्यों द्वारा उत्तराखंड के खिलाफ छेड़ा गया जलयुद्ध है। यह भी वैसा ही हमला है जैसे सन् 1994 में पहाड़ की शिक्षण संस्थाओं और नौकरियों में ओबीसी आरक्षण कर किया गया था। ये लोग चाहते हैं कि पहाड़ के लोग अपनी नदियों,गाड,गधेरों से पीने और सिंचाई का पानी भी न लें और पूरा पानी गंग नहर के जरिये यूपी के खेतों की सिंचाई के लिए छोड़ दें। यदि ऐसा नहीं होता तो साधु-संत सबसे पहले हरिद्वार में गंग नहर तोड़ने की बात करते क्योंकि हरिद्वार में पूरी गंगा पश्चिमी उत्तरप्रदेश के खेतों को सींचने के लिए मोड़ दी जाती है और गंगा की मूलधारा सुखा दी गई है। 
 हमारा मानना है कि उत्तराखंड में जल,जंगल और जमीन को लेकर केंद्र सरकार व  अन्य  बाहरी दखल बंद होना चाहिए। उत्तराखंड के लोगों को जल,जंगल और जमीन का चैकीदार बनाने की साजिश का हम विरोध करते हैं। हम जल,जंगल और जमीन के प्राकृतिक मालिक हैं और इन पर सिर्फ और सिर्फ हमारा ही अधिकार है।
   उत्तराखंड जनमंच का जल अधिकार घोषणापत्र निम्नवत है -

01- टिहरी जैसे बड़े बांधों की हम पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे। टिहरी बांध का तोड़ा जाना जरुरी है क्योंकि इससे टिहरी और उत्तरकाशी के तीन लाख लोगों के लिए भारी मुश्किलें पैदा हो गई है। 

02- भारी विस्थापन वाली कोई भी बांध परियोजना इस समय निर्माणाधीन नहीं है।सैद्धांतिक रुप से जनमंच ऐसी परियोजनाओं का विरोधी है । जनमंच का विचार है कि  छोटे व मध्यम दर्जे के जलाशय सिर्फ गंगा की सहायक नदियों के निर्जन क्षेत्रों में स्थानीय सिंचाई और पेयजल के लिए ही बनाई जांय।

03- गंगा बेसिन अथाॅरिटी को भंग कर पुनर्गठित किया जाय और इसे वैज्ञानिक संस्था बनाकर इसमें हिमालय के चार पर्यावरण विदों को शामिल किया जाय। मौजूदा समय में केंद्र सरकार ने इसे धार्मिक कट्टरपंथियों और व्यावसायिक रुप से आश्रम चलाने वाले महंतों के हवाले कर दिया है। निहित स्वार्थी तत्वों ने अथाॅरिटी को एक साजिश के तहत पहाड़ विरोधी एजेंडे को लागू करने का सबसे बदनाम औजार बना दिया गया है। इसमें पहाड़ के चार पर्यावरणविद्ों को शामिल किया जाय। जब तक इसका पुनर्गठन नहीं होता तब तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री अथाॅरिटी की बैठकों का बहिष्कार करें।

04- पीपलकोटी, लोहारीनाग पाला, पाला मनेरी और भैरोंघाटी प्रोजेक्ट पर काम शुरु किया जाय। लोहारीनाग पाला को उत्तराखंड जल विद्युत निगम को सौंपा जाय और पीपलकोटी में राज्य सरकार को पचास प्रतिशत हिस्सा मिले।

05- पनबिजली प्रोजेक्टों,जलागम प्रबंधन और पारंपरिक जल अधिकारों की बहाली के लिए राज्य सरकार पर्यावरणविद्ों, सामाजिक कार्यकर्ताओं,पुनर्वास विशेषज्ञों और पनबिजली विशेषज्ञों के सहयोग से जल नीति का मसौदा दस्तावेज तैयार करे और उसे बहस के लिए जनता के बीच रखा जाय।

06- पनबिजली प्रोजेक्टों  से प्रभावित लोगों और स्थानीय जनता को पनबिजली परियोजनाओं में शेयर होल्डर बनाया जाय।

07 - पनबिजली प्रोजेक्ट बनाने से पहले प्रभावितों के बीच जनमत संग्रह किया जाय और उसमें परियोजना समर्थकों और विरोधियों को प्रचार करने की आजादी दी जाय। कोई भी पनबिजली प्रोजेक्ट तभी बनाया जाय जब प्रभावित आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा उसके पक्ष में वोट दे।यदि प्रोजेक्ट बनाने के खिलाफ फैसला आता है तो उस इलाके के लोगों के कल्याण के लिए परियोजना विरोधी संगठनों की जवाबदेही भी तय की जाय।

08- निर्माणाधीन पनबिजली परियोजनाओं को छोड़कर बाकी परियोजनायें 400 मेगावाट से अधिक क्षमता की न बनाई जांय और ऐसी योजनायें सिर्फ सरकारी क्षेत्र में ही बनाई जांय। राज्य सरकार केंद्रीय निगमों की उन्ही परियोजनाओं को मंजूरी दे जिनमें राज्य की हिस्सेदारी पचास प्रतिशत हो।
09- विस्थापितों और प्रभावितों की शिकायतों और दावों के निस्तारण के लिए विधानसभा के प्रस्ताव से एक अर्द्धन्यायिक प्राधिकरण बनाया जाय जिसके आदेश परियोजना निर्माण करने वाली एजेंसी के लिए बाध्यकारी हांे।

10-परियोजना प्रभावितों के दीर्घकालीन हितों को ध्यान रखकर ही पुनर्वास नीति तय की जाय। नीति में उस इलाके के लोगों के जीवन को बेहतर करने,उन्हे जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा,वृद्धावस्था पेंशन, प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने पर आर्थिक मदद देने समेत व्यापक सामाजिक सुरक्षा कवर प्रदान किया जाय।

11- परियोजना बनाने वाली एजेंसी और विरोध करने वाले संगठनों का उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाय और इन उत्तरदायित्वों को बाध्यकारी बनाया जाय।

12-आर्थिक शक्ति के रुप में भारत के उभार को रोकने वाली विदेशी ताकतों के हस्तक्षेप से निपटने के लिए विदेशी फंडिंग पर रोक लगाई जाय। विदेशों समेत सभी स्त्रोतों से एनजीओ को मिलने वाली मदद के पूरे ब्यौरे जनता के सामने सार्वजनिक किए जांय और विदेशी फंडिंग को भी सूचना अधिकार व लोकपाल के दायरे में लाया जाय। 

13- पनबिजली आंदोलन में शामिल सभी एनजीओ के आय व्यय की सीबीआई जांच कराई जाय और जब तक जांच में उन्हे क्लीन चिट नहीं मिल जाती तब तक इन संस्थाओं का आयकर विभाग द्वारा प्रदत्त एफसीआरए , 12 ए और 80 जी स्थगित रखा जाय।

14- परियोजना विरोधी एनजीओ संचालकों की व्यक्तिगत और संस्थागत संपत्ति की सीबीआई जांच कराई जाय तथा इन सबके बीस साल तक के वित्तीय खातों की जांच महालेखा परीक्षक की एक विशेष टीम से कराई जाय।

15- सुरंग आधारित परियोजनाओं के लिए निर्जन और न्यूनतम आबादी वाले क्षेत्रों का ही चुनाव किया जाय। सुरंगों के निर्माण में अत्याधुनिक विदेशी तकनीक का प्रयोग किया जाय। विस्फोटों के प्रयोग को न्यूनतम और नियंत्रित रुप से किया जाय ताकि भूगर्भीय स्थिरता पर उसके दुष्प्रभावों को न्यूनतम किया जा सके।

16- मंदाकिनी घाटी समेत उन सभी पनबिजली प्रोजेक्टों पर तब तक कार्य स्थगित किया जाय जब तक विस्थापितों और प्रभावितों की समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता।

17- नदी की मूलधारा में न्यूनतम 26 प्रतिशत पानी छोड़ना अनिवार्य किया जाय और इसकी निगरानी का काम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करे। 

18- पर्यावरण को होने वाली क्षति को पूरा करने के लिए की जाने वाली पर्यावरण संरक्षण के सारे कार्य सीधे महिला मंगल दलों को दिए जांय और वन विभाग को सिर्फ निगरानी का काम सौंपा जाय। इन कामों का नियमित सोशल आॅडिट किया जाय।

19-भवन मुआवजे की गणना के ब्रिटिशकालीन व जनविरोधी मानकों में आमूलचूल बदलाव किया जाय। विस्थापन के कारण होने वाली आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक व प्राकृतिक समेत सभी प्रकार की क्षतिपूर्तियों की गणना कर मुआवजा तय किया जाय। 

20-एक किलोवाट से 100 किलोवाट तक पनबिजली परियोजनाओं के लिए केंद्रीय मदद के प्रस्ताव पर राज्य सरकार की लापरवाही निंदनीय है। जनमंच इसे पहाड़ विरोधी अफसरों की साजिश करार देता है। केंद्र की इस योजना पर कार्रवाई करते हुए तत्काल ग्राम पंचायतों, सहकारी संस्थाओं से तत्काल आवेदन मांगे जांय।

21- विष्णुप्रयाग पनबिजली प्रोजेक्ट से प्रभावित चाईं गांव के लोगों को जेपी समूह एक सर्वांगीण पुनर्वास पैकेज दे। राज्य सरकार जेपी ग्रुप को मूलधारा में 26 प्रतिशत जल प्रवाह बनाए रखने का आदेश जारी करे।

22- टिहरी के विस्थापितों और प्रभावितों को दीर्धकालीन सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने के लिए 800 करोड़ रु0 का फंड तत्काल स्थापित किया जाय। टीएचडीसी अपने लाभ का 10 प्रतिशत और राज्य सरकार बिजली राॅयल्टी का पचास प्रतिशत इस फंड में हर साल जमा करे। प्रतापनगर, घनसाली, जाखणीधार के लोगों को हर साल यात्री किराया अनुदान दिया जाय।

23 - पनबिजली प्रोजेक्टों वाले हर इलाके में इसी तर्ज पर एक सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा कोष स्थापित किया जाय।

24- गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए कांवड़ियों के  उत्तरकाशी के ऊपर  गंगोत्री और गोमुख जाने पर प्रतिबंध लगाया जाय तथा हर तीर्थयात्री व पर्यटक पर पर पचास रु0 पर्यावरण उपकर लगाया जाय।
  
25- गंगा में सर्वाधिक प्रदूषण करने वाले उत्तरकाशी के ऊपर उजेली, गंगोत्री, भोजवासा और तपोवन में स्थापित सभी आश्रमों को हटाया जाय।

26- मुनिकीरेती, ऋषिकेश और हरिद्वार के सभी आश्रमों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तहत लाया जाय तथा इन पर सुख सुविधा कर और पर्यावरण उपकर लगाया जाय। सभी आश्रमों को व्यावसायिक दरों पर बिजली दी जाय।

27- गंगा को गंग नहर से मुक्त कराया जाय। प्रदूषण से निपटने के लिए हरिद्वार में गंगा की मूलधारा नीलधारा में तत्काल 26 प्रतिशत पानी छोड़ा जाय।

28- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरुप गंगा से 200 मीटर से कम दूरी पर स्थित सभी आश्रमों और होटलों को बलपूर्वक हटाया जाय।

29- गंगा में प्रदूषण करने के कृत्य को गैर जमानती अपराध की श्रेणी में लाया जाय। इसका उल्लंघन करने वाले व्यावसायिक, औद्योगिक और स्वयंसेवी संस्थानों के लाइसेंस या पंजीकरण रद्द किए जांय।

30- वनपोषित नदियों के जलागम प्रबंधन और जल संरक्षण के लिए केंद्र सरकार 15000 करोड़ रु0 का कोष स्थापित करे।

31- उत्तरकाशी से गंगोत्री तक इको सेंसेटिव जोन घोषित करने के केंद्र सरकार के फैसले को उत्तराखंड जनमंच संघीय ढ़ांचे पर हमला मानता है और इसे तत्काल वापस लेने की मांग करता है।

32- उत्तराखंड जनमंच केंद्र सरकार गंगा और उसकी सहायक नदियों के प्रबंधन,नियंत्रण और स्वामित्व के मामले में केंद्र सरकार के किसी भी प्रकार के दखल का विरोध करता है और इसे संघीय ढ़ांचे पर हमला मानता है।

Monday, May 28, 2012

Uttrakhand Janmanch News : Janmanch criticises C.M. Uttrakhand


             C.M.'s statement is an attempt
             to be fool the unemployed youth

Uttrakhand Janmanch alleges Chief Minister for fake and baseless promises. Janmanch said that state government is out of money and C.M. is making promises in several hundreds crore. Janmanch disclosed that economic indicators of the state are very poor and state is heading towards bankruptcy. 

 बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान बचकाना- जनमंच
      
                                   पहाड़ को रोजगार अभावग्रस्त क्षेत्र घोषित करे सरकार

उत्तराखंड जनमंच ने बेरोजगारी भत्ता देने के राज्य सरकार के ऐलान को बचकाना,अगंभीर और हवाई करार दिया है। जनमंच ने कहा है कि राज्य सरकार की हालत उस भिखारी जैसी है जिसकी जेब में खाने के लिए चने के दाने तक नहीं है और वह लोगों में काजू बांटने के वादे कर रहा है। जनमंच के कार्यकारी अध्यक्ष शशि भूषण ने कहा है कि जिस राज्य सरकार के पास अपने कर्मचारियों का वेतन देने को पैसे न हों वह बेरोजगारी भत्ते के लिए हर साल छह सौ करोड़ रु0 कहां से लाएगी। उन्होने कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि अगले दस साल में बेरोजगारी भत्ते पर खर्च होने वाले दस हजार करोड़ रुपए कहां से आयेंगे। 
उत्तराखंड जनमंच ने आज यहां जारी एक प्रेस बयान में बेरोजगारी भत्ते के ऐलान को राज्य के लाखों बेरोगारों को बेवकूफ बनाने की कोशिश बताते हुए कहा है कि प्रदेश सरकार को ऐसे सस्ते प्रचार से बचना चाहिए। जनमंच के कार्यकारी अध्यक्ष शशि भूषण भट्ट ने कहा कि राज्य की वित्तमंत्री खजाना खाली होने का रोना रो रही हैं और मुख्यमंत्री मध्यकाल के राजाओं की तरह घोषणाओं की बरसात कर रहे हैं। उन्होने कहा कि राज्य पर 25 हजार करोड़ रु0 का कर्ज है और हर साल उसे ढ़ाई हजार रु0 का कर्ज लेना पड़ रहा है। घोषणा करने से पहले सरकार को राज्य की वित्तीय स्थिति पर श्वेतपत्र जारी करना चाहिए। जनमंच ने कहा कि बेरोजगारों के साथ मजाक करने के बजाय सरकार बेरोगारी दूर करने के लिए स्थायी उपाय करे। उद्योगों में राज्य के बेरोजगारों के लिए 70 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को कड़ाई से लागू किया जाय और उल्लंघन करने वाले उद्योगों को बाजार दर पर बिजली दी जाय। जनमंच ने कहा कि निजी क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र में राज्य में बाहरी राज्यों के बेरोजगारों को रोजगार दिए जाने पर पाबंदी लगाई जाय। उन्ही शिक्षण संस्थाओं, होटलों, शाॅपिंग माॅलों, अस्पतालों को कारोबार करने की अनुमति दी जाय जो 70 प्रतिशत स्थानीय बेरोजगारों को नियुक्ति दें। विश्वविद्यालयों, पीएमजीएसवाई, एडीबी और केंद्र सहायतित योजनाओं में ठेके समेत सभी तरह के काम सिर्फ स्थानीय निवासियों को ही दिए जांय। संविदा पर लगे बाहरी राज्यों के बेरोजगारों को तत्काल हटाया जाय और उनकी जगह स्थानीय बेरोजगारों को नियुक्ति की जाय। अफसरों के पदों में कटौती की जाय और उनकी जगह कर्मचारियों की नियुक्ति की जाय। रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए बिजली परियोजनाओं पर तत्काल काम शुरु कराया जाय। जनमंच के कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्र को रोजगार अभावग्रस्त क्षेत्र घोषित किया जाय और वहां रोजगार सृजन से लेकर सरकारी नियुक्तियों के लिए विशेष अभियान छेड़ा जाय। सरकारी नौकरियों में पहाड़ की शिल्पकार जातियों की पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उनके लिए विशेष भर्ती अभियान चलाया जाय। पहाड़ से पलायन रोकने के लिए वहां के हर परिवार के लिए जीवन निर्वाह के साधन सृजित किए जांय। शशिभूषण ने कहा कि सरकार काॅस्मेटिक उपाय करने के बजाय राज्य की बुनियादी आर्थिक सूचकांकों को ठीक करे।

Sunday, May 27, 2012

P.C. Tiwari condemned Nainital Samachar for defamatory campaign


     पीसी तिवारी की चिट्ठी राजीव लोचन शाह के नाम

उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास के एक बड़े जनांदोलन ‘‘नशा नहीं रोजगार दो’’ के शिल्पी और अग्रणी रहे अल्मोड़ा छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष पीसी तिवारी के खिलाफ ‘‘ नैनीताल समाचार’’ में संपादक राजीव लोचन शाह के लेख के जवाब में अप्रैल 2010 पीसी तिवारी का पत्र इसलिए प्रकाशित किया जा रहा है क्योंकि राजीव लोचन शाह ने हिंदी के प्रख्यात कवि लीलाधर जगूड़ी पर नितांत व्यक्तिगत प्रहार किए हैं। चूंकि जगूड़ी जी इन व्यक्तिगत प्रहारों का जवाब नहीं देना चाहते इसलिए यह पत्र प्रकाशित किया जा रहा है। पीसी तिवारी का कहना है कि इस पत्र के सवालों का कोई जवाब सन् 2010 से अब तक उन्हे नहीं मिला। श्री तिवारी का यह पत्र ज्यों का त्यों पाठकों के विचारार्थ यहां छापा जा रहा है।

आप जानते होंगे कि पिछले कुछ वर्षो से आपसे तथा आपके अखबार से मेरा कोई खास सम्बन्ध नहीं है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि आपके साथ बिताये गये समय ने मुझे इस निष्कर्ष पर पहंुचने को बाध्य किया कि आप उतना ही लोकतन्त्र बरदाश्त कर पाते हैं, जहां तक आप की तारीफ हो। आप संगठन में गुटबाजी करने तथा कमजोर नेता को वश में कर अपनी मनमानी करने के आदी रहे हैं। अगर मैं यह कहंू कि अपनी इन हरकतों से उत्तराखण्ड लोक वाहिनी को पथभ्रष्ट करने और डुबाने में आपने प्रमुख भूमिका निभाई तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। इसलिए मेरा मानना है जिन्हें किसी भी रूप में समाज का काम करना है, उन्हें आगे बढने के लिए आपसे दूरी बनाकर चलना चाहिए। मैं ही नहीं वरन सभी समझदार साथी इस बात को समझते हैं कि आप दो-तीन महानुभावों के काॅकस में तू मेरी तारीफ कर, मैं तेरी तारीफ करूंगा की होड़ रहती है। और बात चाहे संघर्ष की हों, पत्रकारिता की या संस्कृति की, दिन-रात मरने-खपने वाले साथियों के काम से भी अपना नाम चमकाने में आपको महारथ हासिल हो चुकी है। यदा-कदा जब कभी आपके इस व्यवहार को चुनौती मिली तो आप लोगों ने हर किसी को अपने शातिर अंदाज में निपटाने की भरपूर कोशिश की है।
 इसमें कोई शक नहीं है कि एक व्यवसायी परिवार में जन्म लेने तथा उसमें पल़ने-बढ़ने के दौर में आपने अपने हित-लाभ सुरक्षित करना अच्छी तरह सीखा। आपकी पत्रकारिता भी इसका अपवाद नही है। पिछले अनेक वर्षो से आप दिन-रात यह रोना रो रहे है कि ’’सहकारिता के आधार पर उत्तराखण्ड का पाक्षिक’’ जन सहयोग एवं आर्थिक दिक्कतों के चलते कभी भी बंद हो सकता है। आपने इस दर्दनाक अपील से काफी कुछ प्राप्त भी किया है। मित्रवर बहुत अच्छे, ऊंचे संपर्कों, अच्छी आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद आपने ‘नैनीताल समाचार‘ को चलाने की जिम्मेदारी होशियारी से ’’सहकारिता’’ के हवाले कर दी है और संपादक के रूप में हर प्रकार का श्रेय लेने का महान उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया है। एक ऐसे दौर में जब प्रतिबद्ध लोग अभावों से जूझते हुए अपने साधनों से पत्र-पत्रिकायें प्रकाशित कर रहे हैं, तब अपने दायित्व दूसरों पर सफलतापूर्वक डाल पाने के आपके हुनर को मैं सलाम करता हूं। यहां मैं यह अवश्य कहना चाहता हूं कि न्यायपालिका पर भी कलम चलाने का साहस दिखाने वाले आप, अपने समाचार पत्र में नैनीताल के होटल मालिकों के शोषण, पर्यटकों को ठगने, उनसे जमकर वसूली करने की रोज बरोज होती घटनाओं और इन्हीं होटलों में मजबूरी और अभाव से खटने के लिए मजबूर साधारण कर्मचारी की ओर दृष्टिपात नही कर पाते। साहजी आप इस मामले में कुछ कह पायें या न कह पाए हम आपकी मजबूरी को समझते हैं और हमें आपकी इस मजबूरी से सहानुभूति भी है। कम से कम आप हमारी तरह मूर्ख तो नहीं हैं जो असहमत होने पर घर परिवार के लोगों से भी वैसी ही महाभारत कर बैठते हैं जैसे कि बाहर के लोगों से। आपके इस कौशल पर निश्चय ही कुमाऊं विश्वविद्यालय को कुछ शोधपत्र प्रकाशित कराने चाहिए।
राजीव दा अब मैं थोड़ा मुद्दे की बात पर आता हूं जिसके कारण आपके प्रति तटस्थ भाव को छोड़कर मुझे यह खत लिखने को मजबूर होना पड़ा है। आपने अपै्रल 2010 के द्वितीय अंक में अपने नाम से पेज पर अल्मोड़ा़ ......लाजवाब लिखा है। इस लेख में अल्मोडा़ नगर और उसके कुछ सरोकारों के लिए आपने वर्षों से चली आ रही अपनी कुंठाओं को जहां सार्वजनिक किया है वहीं कुछ आड़े-तिरछे व्यंग्य बाणों से अपने बौद्धिक अहंकार को भी प्रदर्शित किया है। साहजी इस लेख को कम से कम दो बार पढ़ने के बाद भी मेरी समझ में यह नहीं आ पाया कि आखिर आप कहना क्या चाहते हैं? आपने लिखा है कि 1984 में यहां (नगर) से उठे नशा नहीं रोजगार आंदोलन ने पूरे देश में अपनी धमक पहुंचायी थी।) जबकि मेरे जैसे लोग समझते हैं कि इस आन्दोलन का प्रारम्भ बसभीड़ा (चैखुटिया) जैसे गांवों की पीड़ा से हुआ था। इस आंदोलन का श्रेय लेने में आप और आपके ’’वरिष्ठ आंदोलनकारी साथी कभी पीछे नहीं रहे’’ पर आपने कुटिल व्यंग्य से मेरे ऊपर यह झूठा आरोप मढ़ दिया कि ’’इस बार शराब माफिया की ओर पीठ फेरे खड़े थे।’’ आपकी बातों से साफ लगता है कि आप लड़ाई लड़ने के लिए नहीं वरन मात्र श्रेय लेने के लिए पैदा हुए हैं। वरना इतना बड़े सामाजिक राजनीतिक मुद्दे पर आप मेरा ठेका होने जैसी बात नहीं करते।
राजीव दा मेरी ओर इशारा करते हुए आपने लिखा है कि अब भी यहां उस दौर के एक वरिष्ठ आंदोलनकारी हैं जो शराब माफिया को लेकर अपने कडे़े़ रुख के कारण पूरे उत्तराखंड में विख्यात हैं। शराब माफिया पर उनके हमले लगातार जारी रहते हैं। और खिझा हुआ शराब माफिया भी जब-तब उनके खिलाफ गुमनाम रूप से चटपटे पर्र्चेे बांटता रहता है।ै। इस बार वो शराब माफिया के खिलाफ पीठ फेरे खड़े थे और अपने एक पुराने आंदोलकारी साथी के खिलाफ पर्र्चेे बांट रहे थे कि वे सांप्रदायिक मंचों  पर जाकर भाषण दे रहे हैं। और इस प्रकार देश की साम्प्रदायिक एकता के लिए बहुत बडा़ खतरा बन गये हैं। उनके ई मेल अटलांंिटिक महासागर पारकर पृथ्थ्वी ग्रह के दूसरे सिरे तक पहुंच रहे थे। इधर शराब माफिया अपना खेल खेल रहा था। उक्त अनर्गल बातें लिखकर आपने मुझ पर बडा़ उपकार किया है। पहली बात मैं स्पष्ट कर दंू कि हम एक शराब माफिया की नहीं वरन सभी शराब माफियाओं की बात करते हैं सोचने की बात यहहै कि जब हम नशे के सवाल को व्यापक संर्दभों में उठाते हैं तक आप लोग शराब माफियाओं की तर्ज पर इस लडाई को सुनियोजित रूप से व्यक्तिगत लड़ाई बताने की कोशिश में लग जाते हैं। इसलिए आपको आपके शब्दों में खीझा हुआ कथित शराब माफिया पर गुस्सा नहीं आता, वरन उससे सहानुभूति होती है और उसके द्वारा निकाले गये अनर्गल बेनामी पर्चे आपको चटपटे लगते हैं। मुझे लगता है कि अपनी इस सांस्कृतिक चेतना व पक्षधरता के लिए शराब माफियाओं को आपको अवश्य सम्मानित करना चाहिए। इसके बावजूद मैं इतना जरूर कहना चाहूंगा कि जो भी असामाजिक तत्व गुंडें व माफिया आम जनता व आन्दोलनकारियों के साथ चोरी और फिर सीनाजोरी की कोशिश करेगा उसे सबक सिखाने में हम कभी न पहले पीछे थे न आगे पीछे रहेंगे। भले इसके लिए हमें अपना सर्वस्व हीं क्यों न दांव में  लगाना पड़ंे। मैं मानता हुूं कि इससे कम तेवरों में हम लोगों में से किसी को भी खुद को आंदोलनकारी कहलाने का हक नहीं है।
साहजी अपने लेख के दूसरे हिस्से में आपने एक महाझूठ को सच की तरह पेश कर मुख्य सवाल से ध्यान बटंाने की कोशिश की है। मुझे आश्चर्य है कि स्वतंत्र व निष्पक्ष पत्रकारिता के आप जैसे धुरंधर ने नैनीताल समाचार में इस सूचना को स्थान क्यों नहीं दिया? पर अल्मोड़ा में आने वाले सभी प्रमुख अखबारों में 21 मार्च को फोटो सहित खबर लगी थी कि 20 मार्च को आपके खास कथित पुराने आंदोलनकारी विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित एकल शिक्षक अभियान के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए और उन्होंने इस अभियान की जमकर तारीफ की। मित्रवर! अनेक मामलों में गंभीर वैचारिक, रणनीतिक मतभेद होने के बाावजूद इस खबर पर सहसा विश्वास करना हमारे लिए भी कठिन था। पर यह कड़वी सच्चाई थी जिसका खंडन करना आपके बूते की बात नहीं है। मैने इन समाचारपत्रों की कतरनों को पौड़ी में आयोजित उमेश डोभाल स्मृृित समारोह में उपस्थित साथियों को दिखाया और उत्तराखण्ड व देश के कुछ अन्य साथियों, पत्रकारों को भी इसकी प्रमाण सहित जानकारी दी। मेरे जैसे व्यक्ति की दृष्टि में यह घटना एक आन्दोलनकारी के वैचारिक पतन की पराकाष्ठा है। मेरा मानना है कि इस तरह की घटनाओं से एक व्यक्ति नहीं आन्दोलन की पूरी एक धारा भी कलंकित होती है। यदि अपने लोगों को इस सूचना को देना गलती माना जाता है तो इस गलती को बार-बार दोहराने में मुझे आपत्ति नहीं होगी। पर आपने इस खबर में पर्चे बांटने जैसे जिस सफेद झूठ का कथन किया है, क्या आप इसे साबित कर सकते हैं? मुझे आश्चर्य है कि ऐसा निराधार व झूठा प्रचार आप कथित ’’सहकारिता के आधार पर निकाले जा रहे पाक्षिक’’ से क्यों कर रहे हैं? क्या सहकारिता में शामिल आपके सभी साथी आपके इस लेखन से सहमत हैं।
इसके आगे आपने पत्रकारों को आबकारी विभाग से कथित दावत, उसके किस्से, कहानियों का बखान कर इस गंभीर मामले को हंसी में उड़ाने की कोशिश की। यहां पर आपने चालाकी से यह जताने की कोशिश की है कि बाकी पश्चातवर्ती घटनाएं जैसे मेरी प्रत्यक्ष व परोक्ष सहमति से घटित हुई हों जबकि इस घटनाक्रम में मैं किसी जगह उपस्थित भी नहीं था। कृपया बताएं आप जैसा बुद्धिजीवी ऐसा क्यों करता है ? जहां तक पत्रकारों को शराब पिलाने की बात है, आप खुद जानते हैं कि उमेश डोभाल स्मृति समारोह जैसे आयोजनो में भी आप जैसे महारथी जो नशा नहीं रोजगार दो आंदोलनों का श्रेय लेने की भी भरपूर कोशिश करते हैं, खुलेआम शराब पीते व पिलाते हैं, तब दूसरों पर टिप्पणी करने का आपका क्या अधिकार है? रही बात कोई सूचना का अधिकार के तहत पूछे तो स्पष्ट हो जाय, तो यह अधिकार आपको तथा आपके वरिष्ठ पुुराने आंदोलनकारी को भी प्राप्त है। आप स्वंय यह काम क्यों नहीं करना चाहते ? राजीव दा मैंने सुना है कि नैनीताल में जहां आपके होटल चलते रहे हैं वह जगह पूर्व में आपके परिवार को एक अन्य स्थान छोड़ने के एवज में गैर व्यवसायिक उपयोग के लिए मिली थी। पर आप लोगों ने पहली जमीन को तो छोड़ा नहीं और दूसरी जमीन का व्यावसायिक उपयोग शुरू कर दिया। मित्रवर! सच्चाई क्या है, इसे आप बेहतर जानते होगें पर मैने सुना है कि इस मामले की फाइल भी नैनीताल नगरपालिका कार्यालय से आपके कुछ हमदर्दो ने गायब करवा दी हैं। तब आप अपने व्यवसाय को कितना वैध कहंेगे इस पर आपको स्वंय विचार करना चाहिए। मित्रवर! आपको शायद मालूम न हो पर सभी आंदोलनकारी शक्तियां जानती हैं कि हम शराब, राजस्व, सियासत के रिश्तों को बेनकाब करने के लिए अभियान चलाये हुए हैं। इसलिए हमने इस समस्या की ओर आपकी तरह पीठ नहीं फेरी है। न आपके व आपके मित्रों की तरह शराब के धंधेबाजों को किसी भी रूप में अपने कार्यक्रमों में बुलाने का पाप किया है। आपका यह लिखना भी सफेद झूठ है कि बसौली में चलने वाले शराब विरोधी आंदोलनों को पत्रकार का सहयोग नहीं मिल पा रहा है।
साहजी कहने को तो बहुत है पर मै जानता हूं कि आप मुझसे इसलिए नाराज हैं कि वर्षों पहले प्रशासनिक अकादमी नैनीताल में झुसिंया दमाई के नाम पर आयोजित एक कार्यक्रम में हुए फर्जीवाड़े को मै डाॅ.़ आर. एस. टोलिया के संज्ञान में ले आया था। उत्तराखण्ड लोक वाहिनी के साथ आप लोगों द्वारा एक बड़े एनजीओ के संचालक रवि चोपड़ा से किये गये घालमेल और उमेश डोभाल स्मृति न्यास में आप लोगों के अलोकतांत्रिक रवैये पर टिप्पणी करने पर भी आप मुझसे खुश नहीं हैं। पर मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बहुत सी और भी बातें है पर इस समय पत्र लंबा नहीं करना चाहता। इस पत्र को मैं केवल आपको भेजना चाहता था। पर मुझे लगता है कि आप इसको अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करने का साहस नहीं करेंगे। इसलिए इस पत्र को कुछ अन्य साथियों को भेज रहा हूं ताकि  यदि वे चाहें तो इस पर आंदोलनकारियों व समाज के बीच में खुली चर्चा हो सके।

आपका
पीसी तिवारी

Saturday, May 26, 2012

Uttrakhand Janmanch's vision on Dams & Hydro Projects


        ये पहाड़ के पानी और जवानी दोनों का सवाल है

एक राज्य के रुप में उत्तराखंड का दुर्भाग्य रहा है कि वह मैदानी क्षेत्रवाद के हमलों और घरेलू जयचंदों के भितरघात की दोहरी साजिश का शिकार रहा है। गंगा की अविरलता के नाम पर मैदानी राज्य और उनके धार्मिक कट्टरपंथी, कांग्रेस,भाजपा और समाजवादी पार्टी एक होकर पहाड़ के खिलाफ तलवारें निकाले हुए हैं तो घर के अंदर पर्यावरण के नाम पर विदेशी फंड से पोषित अपनों ने ही कातिल छुरियां निकाल रखी हैं। एक ओर भाजपा समेत संघ परिवार के सारी भगवा ब्रिगेडें धर्म और आस्था के नाम पर यूपी,बिहार, मध्यप्रदेश और राजस्थान में राममंदिर मुद्दे की तरह उन्माद फैलाने पर आमादा हैं तो दूसरी ओर उत्तराखंड के धंधेबाज सर्वोदयी और कथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी पर्यावरण की धुन छेड़कर उनका साथ दे रहे हैं। साॅफ्ट हिंदुत्व का खेल खेलने में लगी कांग्रेस और उसके प्रधानमंत्री स्वामी स्वरुपानंद के जरिये प्रोजेक्ट विरोधी मुहिम को अंजाम दे रहे हैं। इन सबके बीच गंगा और उसकी सहायक नदियों के पानी पर पहाड़ के लोगों के हक का सवाल पीछे धकेल दिया गया है। कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि कुल 6800 करोड़ रु0 की आमदनी वाला उत्तराखंड राज्य बिना पैसे के अपने कर्मचारी-अफसरों का 10,386 करोड़ रु0 का वेतन भत्ता और लगभग 5000 करोड़ रु0 के योजना व्यय के लिए 16000 करोड़ रु0 कहां से लाएगा? उत्तराखंड को आर्थिक रुप से दिवालिया बनाने की पूरी तैयारी कर दी गई हैं। इसका सीधा असर रोजगार के अवसरों पर होगा। जिस सरकार के पास वेतन देने के लिए पैसा नहीं होगा वह नए कर्मचारियों की भरती कैसे करेगी? यह पूरा खेल उत्तराखंड को उग्रवाद के रास्ते पर धकेल देगा।
उत्तराखंड जनमंच स्पष्ट रुप से यह मानता है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों के पानी की हर बूंद पर पहाड़ के लोगों का हक है।पर्यावरणवादियों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और यशलोलुपता के कारण पहाड़ के लोगों को 1980 से वनों पर अपने मालिकाना हक को नहीं बल्कि वन संपदा के लाभों से भी हाथ धोना पड़ा है। आज जो लोग पनबिजली प्रोजेक्टों का विरोध कर रहे हैं वे ही तब जनविरोधी वन कानून का समर्थन कर रहे थे। क्या उत्तराखंड के वनों पर सरकारी कब्जे के लिए जिम्मेदार उन पर्यावरणवादी नेताओं को क्षमा किया जा सकता है? यदि वन उपज और जड़ी बूटियों पर गांव के लोगों का हक होता तो पहाड़ के गावों की काया कल्प हो गई होती। अब एक बार फिर वही खेल शुरु हो गया है। परदे के पीछे से जो एनजीओ मदद कर रहे हैं उनके पास क्रिश्चयन एड, एक्शन एड और आॅक्सफेम के डाॅलरों की खनक है। लेकिन इसकी कीमत उत्तराखंड को जल पर अपने परंपरागत अधिकार को गंवाने में चुकानी पड़ेगी। 
 संविधान के अनुसार जल राज्य सूची का विषय है। यानी जल पर कानून बनानेका अधिकार राज्य को है। लेकिन केंद्र सरकार ने एक झटके में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया। राष्ट्रीय नदी घोषित होते ही गंगा और उसकी सारी सहायक नदियों के बारे में कानून बनाने का अधिकार केंद्र के पास चला गया। इसके बाद गंगा बेसिन अथाॅरिटी बनाई गई और उसमें उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों का कोई भी प्रतिनिधि नहीं रखा गया। उल्टे उसमें ऐसे लोग रखे गए जिनका पहाड़ी क्षेत्र या गंगा और उसकी सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जल संरक्षण या पर्यावरण संरक्षण पर कोई काम ही नहीं था।गंगा बेसिन अथाॅरिटी में संघ परिवार की भगवा ब्रिगेड से जुड़े महंत और मैदानी राज्यों के हितों के रक्षा करने वाले पर्यावरणवादी सदस्य बना दिए गए। उस पर तुर्रा यह कि गंगा बेसिन अथाॅरिटी के नियम कानून में कहीं भी पर्यावरण का विषय नहीं है। लेकिन उत्तराखंड की बिजली प्रोजेक्टों के मामले में उसे नियामक संस्था बना दिया गया। कमजोर मुख्यमंत्रियों ने कभी यह आवाज नहीं उठाई कि केंद्र सरकार सरासर संघीय ढ़ांचे का उल्लंघन कर रही है। दिलचस्प बात यह है कि खुद को पर्यावरण और प्रगतिशीलता का चैंपियन घोषित करने वाले नेताओं ने संघीय ढ़ांचे पर किए जा रहे इन हमलों का विरोध नहीं किया। इनमें से किसी ने भी अथाॅरिटी में गैर पहाड़ी प्रतिनिधि नामांकित करने का कभी विरोध नहीं किया। जाहिर है कि उत्तराखंड के निवासी होने के बावजूद इन लोगों की निष्ठा पहाड़ और उसके लोगों के प्रति नहीं है। ये लोग भले ही मंचों पर दिखाई दे रहे हों पर ये अपने मालिकों को गंगा बेसिन अथाॅरिटी का मेंबर बनाने के काम में लगे हुए हैं। केंद्र सरकार ने संघीय ढ़ांचे के खिलाफ जाकर गंगा और उसकी सहायक नदियों के मामले मे तो हस्तक्षेप किया ही साथ ही उत्तरकाशी से आगे का इलाका इको सेंसेटिव जोन घोषित कर राज्य सरकार को उसकी औकात बता दी। देश के लगभग सारे राज्य अपने अधिकारों को लेकर मुखर हैं केवल उत्तराखंड के राजनीतिक दल और नेता ही चुप रहते हैं। उत्तराखंड के ये कथित बुद्धिजीवी ही केंद्र सरकार से लेकर विदेशों तक राज्य के मामलों में बाहरी दखल को आमंत्रित करते रहते हैं। महज इसलिए इनमें से कुछ को पुरस्कार चाहिए,कुछ को एनजीओ से पैसा चाहिए ।
गंगा की अविरल धारा दो प्रोजेक्ट रोक रहे हैं। टिहरी बांध और गंग नहर। कानपुर,इलाहाबाद और बनारस में जिस गंगा पर शोर मचाया जा रहा है वह दरअसल गंगा तो है ही नहीं। वह तो नजीबाबाद और बिजनौर जिलों के नालों का पानी है। हरिद्वार में गंगा का 98 प्रतिशत पानी गंग नहर में चला जाता है और गंगा की मूलधारा का नाम भी बदलकर नीलधारा कर दिया गया है। समूची गंगा पश्चिमी यूपी और मध्य यूपी की सिंचाई के लिए खत्म कर दी गई है। हरिद्वार में गंगा की अविरलता कोई सवाल नहीं है। जबकि वहां पूरी गंगा का ही कत्ल कर दिया गया है। एक भी साधुसंत या उत्तराखंड का कथित पर्यावरणवादी ठेकेदार यह नहीं कहता कि हरिद्वार में नीलधारा में कम संे कम 26 प्रतिशत पानी छोड़ा जाय ताकि गंगा की मूलधारा में पर्याप्त पानी रहे और उसकी प्राकृतिक साफ-सफाई हो सके।लेकिन ये सारे लोग गंगा की नहीं बल्कि गंग नहर के पानी की लड़ाई लड़ रहे हैं। गंगा की अविरल धारा टिहरी बांध में रुकी है। उसे तोड़ने की मांग कोई साधुसंत नहीं करता। जनमंच चाहता है कि गंगा की अविरलता के लिए टिहरी बांध को तोड़ दिया जाना चाहिए।
हमारा मानना है कि गंगा की अविरलता का आंदोलन दरअसल पहाड़ के लोगों को गंगा और उसकी सहायक नदियों के पानी के उपयोग के अधिकार को वंचित करना है। अभी इसका दूसरा चरण सामने आया है। तीसरे चरण में गंगा की पवित्रता के नाम रिवर राफ्टिंग पर बैन लगाना है और चैथे और निर्णायक चरण में पहाड़ के लोगों को गंगा और उसकी सहायक नदियों के पानी से सिंचाई और पेयजल की सुविधाओं से वंचित करना है जिस दिन यह पूरा हो गया उस दिन गढ़वाल के पहाड़ पूरी तरह से बरबाद और निर्जन हो जायेंगे। दरअसल मैदानी राज्यों और उसके बुद्धिजीवियों, धार्मिक कट्टरपंथियों,कांग्रेस,भाजपा व सपा ने पहाड़ के खिलाफ जलयुद्ध छेड़ दिया है। इसलिए बिजली प्रोजेक्टों का सवाल जल अधिकार और संघीय ढ़ांचे पर हमले का प्रश्न है। जनमंच यह भी स्पष्ट करना चाहता है कि वह उत्तराखंड में निजी कंपनियों को पनबिजली क्षेत्र में लाए जाने का विरोधी है। हम उन्ही प्रोजेक्टों को बनाए जाने के हिमायती हैं जिनमें राज्य का 50 प्रतिशत हिस्सा हो। जनमंच लोगों की इच्छा के खिलाफ बनाए जा रही किसी भी पनबिजली प्रोजेक्ट का विरोधी है। उसका मानना है कि कोई प्रोजेक्ट तभी बनना चाहिए जब 70 प्रतिशत विस्थापित और प्रभावित इसके लिए सहमति व्यक्त करें। जनमंच हर प्रोजेक्ट में प्रभावितों को शेयर होल्डर बनाए जाने का हामी है। जनमंच का मानना है कि किसी भी नदी में प्रोजेक्ट बनाए जाने पर उसके मूल प्रवाह में सर्दियों के समय के जल प्रवाह के बराबर पानी हर समय छोड़ा जाना चाहिए। साथ ही विष्णुप्रयाग प्रोजेक्ट बनाने वाली कंपनी जेपी ग्रुप को 26 प्रतिशत पानी छोड़ने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। जनमंच श्रीनगर जल विद्युत प्रोजेक्ट की ऊंचाई अनधिकृत रुप से बढ़ाए जाने का विरोध करता है तथा सरकार से मांग करता है कि श्रीनगर प्रोजेक्ट कंपनी के खिलाफ अवैध खनन के मामले को रफा-दफा करने वाले अफसरों और नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की जाय । इस कंपनी से 80 करोड़ रु0 की वसूली तत्काल कर खनन की जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए। जनमंच चाहता है कि नदी बचाओं आंदोलन में शामिल सभी एनजीओं ,उनके मालिकों और समर्थकों की बीस साल में जोड़ी गई संपत्ति और खर्चों की जांच कैग से कराई जाय।
जनमंच का मानना है कि उत्तराखंड की कुल क्षमता का यदि 60 प्रतिशत भी बिजली बनाने में उपयोग हुआ तो राज्य को 50 प्रतिशत हिस्सेदारी और 12 प्रतिशत रायल्टी से 90 अरब रु0 की आमदनी होगी। इसका यदि पचास प्रतिशत भी यदि जन कल्याण में लगा तो पहाड़ के छह लाख परिवारों से एक-एक युवा को नौकरी मिल सकती है या पहाड़ के साढ़े सात लाख परिवारों में से हर परिवार को हर माह दस हजार रु0 का जीवन निर्वाह भत्ता मिल सकता है। जनमंच पहाड़ की इसी समृद्धि के लिए बिजली प्रोजेक्टों का समर्थन कर रहा है। हमारा माना है कि एक राज्य के रुप में हमारे पास दो ही विकल्प है। या तो हम हर घर तक शराब पहंुचाकर कर राजस्व बढ़ायें या फिर बिजली बनाकर युवाओं के लिए लिए रोजगार का रास्ता खोलें। हमने यदि यह रास्ता भी गंवा दिया तो पहाड़ के नौजवान भी किसी दिन हाथ में बंदूक उठा लेंगे और हमारे पूरे समाज को छत्तीसगढ़ और झारखंड की तरह खून के दरियाओं से होकर गुजरना पड़ेगा। विकल्प साफ हैं ‘‘शराब या पानी, नौकरी या बंदूक’’। चुनाव पहाड़ के लोगों को करना है। कुछ एनजीओ और उनके टुकड़ों पर पल रहे बुद्धिजीवी अपना एजेंडा हम पर नहीं थोप सकते।
उत्तराखंड जनमंच निशंक सरकार के खिलाफ और उसके बाद भी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का हिस्सा रहा है । हम सार्वजनिक और निजी जीवन में गलत साधनों का प्रयोग न करने के प्रति प्रतिबद्ध हैं। इसलिए जनमंच के सारे पदाधिकारी अपने निजी खातों,आय के साधनों,खर्चों और संगठन के खाते की जांच किसी भी एजेंसी से कराए जाने के लिए हर समय तैयार हैं।

Friday, May 25, 2012

Uttrakhand News Archive for Uttrakhand Janmanch

                        Newspaper Cuttings of News
                        related to Uttrakhand Janmanch














Thursday, May 24, 2012

Vision Statement of Uttrakhand Janmanch



              The Vision Statement of Uttrakhand Janmanch


At very outset we make it clear that Uttrakhand Janmanch is non party political organization. We are of the firm belief that Uttrakhand is not only a hill state but has been created exclusively to cater to the needs of of the hill community.  To ensure the unique cultural and ethnic identity of hill community of Uttrakhand. It is imperative that they must not only have exclusive access  to natural and economic  resources but also pre dominance in the socio-economic and political sphere of life.
In a statement Uttrakhand Janmanch's Secretary General Rajen Todariya told that there is nothing unusual about the same as the states have been created/ reorganized under the constitution of India, acknowledging the regional the regional aspirations and preservation of ethnic identity.  We consider the creation of the state of Uttrakhand is not only maintaining distinct identity of the Uttrakhandis but also fulfills political aspirations within the framework of constitution of India. One of the motivating factor leading to the creation of state of Uttrakhand was to uplift the under developed socio economic and education level of the hill community and bring it at par with the developed societies of India. All these aspirations could only be met if hill community dominated the both public and private sector. Unfortunately the things have not turned out, the way they should have because the lack of governance and political will. As the things stand today, People of hill origin account for just 30 percent of the total employment available in the public sector. Their share in the government work / project is less than 15 percent as rest is accounted for by multinationals and big companies from the outside. The discriminatory policies of the respective government to the people of hill origin have resulted their share just 5 percent in the industrial set up in Uttrakhand. The share of people of hill origin in the wholesale trade does not exist, while in retail it is just 10 percent and so.
The matter of concern, there is no serious thinking in this regard in the part of respective government. The insensitivity on the part of political set up to the core issues have created the situations, it is no better than what existed and led to social strike in the state of Assam in the eighties of last century. The data as available from the current census that being carried out indicate that there has been an addition of 5 to 9 lakhs of outsiders to the population of the state in the last 10 years. Which is 43 percent of total population increased in last decade .Which is very alarming trend and if not addressed as top priority issue it will hamper the socioeconomic fabric of the state. We may have another Assam like situation is the offing. The demographic character of the state in next 10 years would be completely different from the one we had on the eve of the creation of the state. The situation, post delimitation exercise is an eye opener. The number of seat available in the hill areas have been cut down by six and added to plain areas. As per data available roughly 70,000 non Uttrakhandis are being added to the population of Uttrakhand or one may say that every three year a district of Rudraprayag is added to the state. Secretary General of Uttrakhand Janmanch described it  the result of the myopic and anti hill attitude of then Home Minister Mr L.K.Adwani,who decided to include Haridwar district in the state of Uttrakhand. Despite the fact the people of Haridwar district were opposed to it, the same is largely contributed in creating demographic imbalance. In the backdrop of the above the Uttrakhand Janmanch strongly feels that there is a need of of a mass movement against the illegal and unregulated infiltration by outsiders. We also reached to the conclusion that district of Haridwar must be separated from Uttrakhand in the interest of country as well as Uttrakhand. We are of the opinion that Haridwar is neither has cultural and ethnic similarity with the people of hills and nor It is natural part of Uttrakhand.   

Uttrakhand Janmanch releases its logo

  Uttrakhand Janmanch releases logo
Uttrakhand Janmanch Today releases its logo. Secretary General of Janmanch Rajen Todariya said on this occasion that the logo is symbol of resistance of hills of Uttrakhand. He said that logo represents the regional discourse, anger, struggle and regional aspirations of the hills of Uttrakhand. He said that a long journey is ahead to make people of Uttrakhand prosperous and self reliant. Journey of change is begun. People will come together and the scenario will be changed cpmpletely . He said that change is not only possible but we have no option to go for change.




 उत्तराखंड जनमंच ने अपना लोगो जारी कर दिया है। यह पहाड़ी क्षेत्रीयता के प्रतिरोध का प्रतीक है। ‘‘पहाड़ की आन,बान और शान’’ जनमंच का ध्येय वाक्य घोषित किया गया है जबकि ‘‘ रोजगार हो या कारोबार,भूमिपुत्र का पहला अधिकार’’ आप्त वाक्य घोषित किया गया है। जनमंच का ध्वज, एजेंडा और अवधारणा भी जल्द ही एक पत्रकार सम्मेलन में जारी किए जायेंगे। इस मौके पर उत्तराखंड जनमंच के प्रमुख महासचिव ने अपने प्रेरणादायी उद्बोधन में कहा कि जनमंच का लोगो पर्वतीय प्रतिरोध असंतोष, गुस्से, स्वाभिमान, क्षेत्रीय जनाकांक्षाओं का प्रतीक है। उन्होने कहा कि उ त्तराखंड के भाग्य बदलने की यात्रा शुरु हो चुकी है। लो इसमें आते जायेंगे और आने वाले साल गवाही देंगे कि उत्तराखंड को गरीब,दीन-हीन और गुलाम नहीं बनाया रखा जा सकता। उन्होने कहा कि परिवर्तन न केवल संभव है बल्कि उससे भी बड़ी बात यह है कि हमारे पास परिवर्तन के अलाव कोई विकल्प नहीं है।

Wednesday, May 23, 2012

Uttrakhand News Archives : Uttrakhand Janmanch's agitations & Activities

       Uttrakhand Janmanch's crusade against corruption

 Uttrakhand Janmanch began his campaign against corrupt practices of Nishank Government on 17 July 2011 at Rulek audotourium in Dehradun. It was first time when somebody publically opposed the corruption of then Chief Minister Ramesh Pokhariyal Nishank. It was the time when no body was dare to launch a stir against the corruption of the C.M. including Congress, BSP and UKD . Uttrakhand Janmanch convened a seminar on corruption to unite the people against corruption. Large number of people and well-known dignities from walks of life attended the seminar and pledged to participate a campaign against corruption. Gadhwali Folk Singer Narendra Singh Negi, Lt. General rtd   T.P.S. Rawat,renowned Economist Prof N.S.Bist, theatre artist and famous poet Atul Sharma,  Former Horticulture Director Dr B.P.Nautiyal, senior journalist from Mumbai Keshar Singh Bist,Ravindra Jugran, L.R. Kothiyal, trade union leader B.P. Mamgain, L.R. Bijlwan and leftist leader Sher Singh Rana were among the dignities who were present in the seminar. 
Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011


Rahul Kotiyal student leader addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011


                                                    Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011



                                            Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011

Rajen Todariya, Atul Sharma, Narendra Singh Negi, Lt General rtd T.P.S. Rawat and Chandan Singh Rana in Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011


                             Rajen Todariya Secretary General Janmanch addressing                    Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011


Youth leader Ravi Kala addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011




Rajen Todariya  addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011



 Rajen Todariya addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011


 Rajen Todariya addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011




 Rajen Todariya addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011



                                         Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011



  Pradip Sati addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011



  Eminent Economist Pro. N.S.Bist from H.P. University Shimla  addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011



  Poet and famous theatre artist Atul Sharma addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011



Famous Garhwali Folk Singer and lyricist Narendra Singh Negi presenting his famous " Kathga Khalyu"  in Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011. This song was directly attacks then C.M. rAMESH pokhriyal Nishank's corrupt practices 


 Former Director Uttrakhand Horticulture Dr B.P. Nautiyal addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011


 Former President D.A.V. Student Union Ravindra Jugran addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011



Poet Atul Sharma singing a people's lyric " Dukh ho sukh ho, geet hum gayenge"




Mumbai based Senior Journalist Keshar Singh Bisht  addressing Uttrakhand Janmanch seminar on 17 July 2011










Tuesday, May 22, 2012

Birth of Uttrakhand Janmanch

       The Mission of Uttrakhand Janmanch


Uttrakhand Janmanch is an aggressive regional outfit of Uttrakhand. Janmanch had dedicated itself for the cause of son of soils of Uttrakhand hills. Uttrakhand Janmanch was earlier founded by Rajen Todariya in Chamba town of Tehri Garhwal in 2002.  Shashi bhushan Bhatt, a leader of  Communist Party Marxist left his party and elected founder Chairman of Uttrakhand Janmanch. Rajen Todariya was elected Founder Secretary General of the forum. Janmanch came into light when it organised a aggressive procession in Chamba town with shouting pro pahadi slogans. But due to unknown reasons Janmanch got inactive since 2003 and no activities was carried out by this forum upto 2010. In 2011 suddenly Janmanch wake up and it had shown its presence in Dehradun. The workers of Janmanch stormed into the office of  State Electricity Regulatory Authority against the hike in tariff. The aggressive stance of Janmanch compel the  govt to take back the proposed hike in tariff .  It was first victory of Uttrakhand Janmanch which made the forum a credible organisation in the eyes of the people of Uttrakhand.