Uttrakhand Janmanch has released its final draft on water rights. Janmanch stressed that thepeople of hills of Uttrakhand has exclusive rights over each and every drop of Ganga and its tributaries . Janmanch warned that nobody can deprive them to use their water resources for the welfare of the people. Janmanch condemns Central Government for voilating the federal structure of the constitution . Janmanch said that central Govt's decisions about Ganga and hydro projects are uncalled for and clear violation of Federal laws as Water is declared state subject in the constitution of India.
गंगा की हर बूंद पर हक हमारा है
लोकसभा में गंगा पर हुई बहस में मुलायम सिंह के खास आदमी और समाजवादी पार्टी के सांसद रेवतीरमण सिंह ने कहा कि यदि गंगा में बिजली प्रोजेक्ट बने तो यूपी बिहार में पानी कम हो जाएगा। यह झूठ है पर रेवतीरमण सिंह ऐसा कहकर यूपी और बिहार के लोगों को पहाडियों़ के खिलाफ भड़का रहे हैं। वे पहाड़ के लोगों को डराना भी चाह रहे थे ताकि वे गंगा,गाड,गधेरों से पीने के पानी,सिंचाई और बिजली के लिए प्रोजेक्ट न बनायें। मित्रों! आपके पानी पर कब्जा करने के लिए मैदानी क्षेत्रवादी संतों-महंतों,शंकराचार्यों और राजनीतिक नेताओं ने उत्तराखंड के खिलाफ जलयुद्ध छेड़ दिया है। आज आपने जल स्त्रोतों पर अपने प्राकृतिक अधिकार की रक्षा नहीं की तो इतिहास आपको कभी माफ नहीं करेगा। पहले उन्होने आपसे आपके जंगल छीने, अब पानी छीन रहे हैं और इसके बाद वे आपसे आपकी जमीन छीनकर आपको अपने ही देश में शरणार्थी बना देंगे।
जल अधिकार घोषणापत्र
उत्तराखंड जनमंच की साफ नीति है कि जल,जंगल और जमीन उत्तराखंड की जनता के संसाधन हैं। इन पर उनका प्राकृतिक अधिकार है । हमारा साफ कहना है कि पनबिजली परियोजनाओं से आने वाली समृद्धि पर पहला हक स्थानीय लोगों का है। दूसरा हक राज्य सरकार है और तीसरा हक देश का है। जनमंच पनबिजली उत्पादन के क्षेत्र में निजी कंपनियों के प्रवेश का विरोधी है। जनमंच भारी विस्थापन करने वाले बांधों और उन जल विद्युत परियोजनाओं का विरोधी है जो स्थानीय लोगों को दीर्घकालीन लाभ नहीं दे पा रही है। लेकिन जनमंच पनबिजली परियोजनाओं को लेकर विदेशी फंडिंग एजेंसियों के यूरोपीय हित वाले एजेंडे के खिलाफ है। जनमंच का मानना है कि जल संसाधन राज्य के अधिकार क्षेत्र में आते हैं इसलिए केंद्र सरकार, बाहरी राज्यों, व्यक्तियों,संगठनों और अन्य राजनीतिक शक्तियों को इसमें दखल देने का अधिकार नहीं है। ऐसे लोग और संस्थायें जिनकी निष्ठायें उत्तराखंड के लोगों के प्रति न होकर विदेशी ताकतों, बाहरी राज्यों, कारोबारियों, निगमों के प्रति है वे उत्तराखंड के विकास का एजेंडा तय नहीं कर सकते। उत्तराखंड के लोगों का भाग्य दिल्ली,लखनऊ, राजस्थान,बनारस या यूरोपीय व अमेरिकी शहरों में नहीं लिखा जा सकता। अपना भाग्य तय करना इस राज्य के लोगों का अधिकार है और इसमें कोई भी दखल पूरी अस्वीकार्य और उपनिवेशवादी मानसिकता से प्रेरित है। उत्तराखंड जनमंच का मानना है कि पूरी दुनिया में तेल के बाद जल सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है। इस पर कब्जे के लिए बड़ी ताकतें साजिश कर रही हैं। पहाड़ के लोगों के जल स्त्रोतों पर भी बाहरी ताकतों की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। गंगा को लेकर चल रहा पूरा आंदोलन मैदानी राज्यों और संगठनों द्वारा पहाड़ के लोगों को अपने पानी का उपयोग करने से रोकने के लिए है। धर्म,आस्था और पर्यावरण की आड़ में चलाए जा रहे इस आंदोलन का लक्ष्य यूपी और बिहार समेत मैदानी राज्यों के लिए पहाड़ का पूरा पानी आरक्षित कराना है। मुलायम सिंह यादव के खास और समाजवादी पार्टी के सांसद रेवती रमण सिंह ने लोकसभा में हुई बहस में साफ कहा कि पहाड़ में बिजली प्रोजेक्ट बनने से यूपी और बिहार को नुकसान होगा। विदेशी एजेंसियों और बाहरी संगठनों से करोड़ों रु0 कमाने वाले कुछ जयचंद पैसे के लिए अपने लोगों के हितों के साथ गदृदारी कर रहे हैं। पर्यावरण के नाम पर करोड़ों रुपए की संपत्ति बटोर चुके ऐसे लोग पहाड़ी जनता का हित बाहरी लोगों के पास बेच रहे हैं। इसलिए यह धार्मिक मामला नहीं है बल्कि मैदानी संगठनों और राज्यों द्वारा उत्तराखंड के खिलाफ छेड़ा गया जलयुद्ध है। यह भी वैसा ही हमला है जैसे सन् 1994 में पहाड़ की शिक्षण संस्थाओं और नौकरियों में ओबीसी आरक्षण कर किया गया था। ये लोग चाहते हैं कि पहाड़ के लोग अपनी नदियों,गाड,गधेरों से पीने और सिंचाई का पानी भी न लें और पूरा पानी गंग नहर के जरिये यूपी के खेतों की सिंचाई के लिए छोड़ दें। यदि ऐसा नहीं होता तो साधु-संत सबसे पहले हरिद्वार में गंग नहर तोड़ने की बात करते क्योंकि हरिद्वार में पूरी गंगा पश्चिमी उत्तरप्रदेश के खेतों को सींचने के लिए मोड़ दी जाती है और गंगा की मूलधारा सुखा दी गई है।
हमारा मानना है कि उत्तराखंड में जल,जंगल और जमीन को लेकर केंद्र सरकार व अन्य बाहरी दखल बंद होना चाहिए। उत्तराखंड के लोगों को जल,जंगल और जमीन का चैकीदार बनाने की साजिश का हम विरोध करते हैं। हम जल,जंगल और जमीन के प्राकृतिक मालिक हैं और इन पर सिर्फ और सिर्फ हमारा ही अधिकार है।
उत्तराखंड जनमंच का जल अधिकार घोषणापत्र निम्नवत है -
01- टिहरी जैसे बड़े बांधों की हम पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे। टिहरी बांध का तोड़ा जाना जरुरी है क्योंकि इससे टिहरी और उत्तरकाशी के तीन लाख लोगों के लिए भारी मुश्किलें पैदा हो गई है।
02- भारी विस्थापन वाली कोई भी बांध परियोजना इस समय निर्माणाधीन नहीं है।सैद्धांतिक रुप से जनमंच ऐसी परियोजनाओं का विरोधी है । जनमंच का विचार है कि छोटे व मध्यम दर्जे के जलाशय सिर्फ गंगा की सहायक नदियों के निर्जन क्षेत्रों में स्थानीय सिंचाई और पेयजल के लिए ही बनाई जांय।
03- गंगा बेसिन अथाॅरिटी को भंग कर पुनर्गठित किया जाय और इसे वैज्ञानिक संस्था बनाकर इसमें हिमालय के चार पर्यावरण विदों को शामिल किया जाय। मौजूदा समय में केंद्र सरकार ने इसे धार्मिक कट्टरपंथियों और व्यावसायिक रुप से आश्रम चलाने वाले महंतों के हवाले कर दिया है। निहित स्वार्थी तत्वों ने अथाॅरिटी को एक साजिश के तहत पहाड़ विरोधी एजेंडे को लागू करने का सबसे बदनाम औजार बना दिया गया है। इसमें पहाड़ के चार पर्यावरणविद्ों को शामिल किया जाय। जब तक इसका पुनर्गठन नहीं होता तब तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री अथाॅरिटी की बैठकों का बहिष्कार करें।
04- पीपलकोटी, लोहारीनाग पाला, पाला मनेरी और भैरोंघाटी प्रोजेक्ट पर काम शुरु किया जाय। लोहारीनाग पाला को उत्तराखंड जल विद्युत निगम को सौंपा जाय और पीपलकोटी में राज्य सरकार को पचास प्रतिशत हिस्सा मिले।
05- पनबिजली प्रोजेक्टों,जलागम प्रबंधन और पारंपरिक जल अधिकारों की बहाली के लिए राज्य सरकार पर्यावरणविद्ों, सामाजिक कार्यकर्ताओं,पुनर्वास विशेषज्ञों और पनबिजली विशेषज्ञों के सहयोग से जल नीति का मसौदा दस्तावेज तैयार करे और उसे बहस के लिए जनता के बीच रखा जाय।
06- पनबिजली प्रोजेक्टों से प्रभावित लोगों और स्थानीय जनता को पनबिजली परियोजनाओं में शेयर होल्डर बनाया जाय।
07 - पनबिजली प्रोजेक्ट बनाने से पहले प्रभावितों के बीच जनमत संग्रह किया जाय और उसमें परियोजना समर्थकों और विरोधियों को प्रचार करने की आजादी दी जाय। कोई भी पनबिजली प्रोजेक्ट तभी बनाया जाय जब प्रभावित आबादी का 70 प्रतिशत हिस्सा उसके पक्ष में वोट दे।यदि प्रोजेक्ट बनाने के खिलाफ फैसला आता है तो उस इलाके के लोगों के कल्याण के लिए परियोजना विरोधी संगठनों की जवाबदेही भी तय की जाय।
08- निर्माणाधीन पनबिजली परियोजनाओं को छोड़कर बाकी परियोजनायें 400 मेगावाट से अधिक क्षमता की न बनाई जांय और ऐसी योजनायें सिर्फ सरकारी क्षेत्र में ही बनाई जांय। राज्य सरकार केंद्रीय निगमों की उन्ही परियोजनाओं को मंजूरी दे जिनमें राज्य की हिस्सेदारी पचास प्रतिशत हो।
09- विस्थापितों और प्रभावितों की शिकायतों और दावों के निस्तारण के लिए विधानसभा के प्रस्ताव से एक अर्द्धन्यायिक प्राधिकरण बनाया जाय जिसके आदेश परियोजना निर्माण करने वाली एजेंसी के लिए बाध्यकारी हांे।
10-परियोजना प्रभावितों के दीर्घकालीन हितों को ध्यान रखकर ही पुनर्वास नीति तय की जाय। नीति में उस इलाके के लोगों के जीवन को बेहतर करने,उन्हे जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा,वृद्धावस्था पेंशन, प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने पर आर्थिक मदद देने समेत व्यापक सामाजिक सुरक्षा कवर प्रदान किया जाय।
11- परियोजना बनाने वाली एजेंसी और विरोध करने वाले संगठनों का उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाय और इन उत्तरदायित्वों को बाध्यकारी बनाया जाय।
12-आर्थिक शक्ति के रुप में भारत के उभार को रोकने वाली विदेशी ताकतों के हस्तक्षेप से निपटने के लिए विदेशी फंडिंग पर रोक लगाई जाय। विदेशों समेत सभी स्त्रोतों से एनजीओ को मिलने वाली मदद के पूरे ब्यौरे जनता के सामने सार्वजनिक किए जांय और विदेशी फंडिंग को भी सूचना अधिकार व लोकपाल के दायरे में लाया जाय।
13- पनबिजली आंदोलन में शामिल सभी एनजीओ के आय व्यय की सीबीआई जांच कराई जाय और जब तक जांच में उन्हे क्लीन चिट नहीं मिल जाती तब तक इन संस्थाओं का आयकर विभाग द्वारा प्रदत्त एफसीआरए , 12 ए और 80 जी स्थगित रखा जाय।
14- परियोजना विरोधी एनजीओ संचालकों की व्यक्तिगत और संस्थागत संपत्ति की सीबीआई जांच कराई जाय तथा इन सबके बीस साल तक के वित्तीय खातों की जांच महालेखा परीक्षक की एक विशेष टीम से कराई जाय।
15- सुरंग आधारित परियोजनाओं के लिए निर्जन और न्यूनतम आबादी वाले क्षेत्रों का ही चुनाव किया जाय। सुरंगों के निर्माण में अत्याधुनिक विदेशी तकनीक का प्रयोग किया जाय। विस्फोटों के प्रयोग को न्यूनतम और नियंत्रित रुप से किया जाय ताकि भूगर्भीय स्थिरता पर उसके दुष्प्रभावों को न्यूनतम किया जा सके।
16- मंदाकिनी घाटी समेत उन सभी पनबिजली प्रोजेक्टों पर तब तक कार्य स्थगित किया जाय जब तक विस्थापितों और प्रभावितों की समस्याओं का समाधान नहीं हो जाता।
17- नदी की मूलधारा में न्यूनतम 26 प्रतिशत पानी छोड़ना अनिवार्य किया जाय और इसकी निगरानी का काम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करे।
18- पर्यावरण को होने वाली क्षति को पूरा करने के लिए की जाने वाली पर्यावरण संरक्षण के सारे कार्य सीधे महिला मंगल दलों को दिए जांय और वन विभाग को सिर्फ निगरानी का काम सौंपा जाय। इन कामों का नियमित सोशल आॅडिट किया जाय।
19-भवन मुआवजे की गणना के ब्रिटिशकालीन व जनविरोधी मानकों में आमूलचूल बदलाव किया जाय। विस्थापन के कारण होने वाली आर्थिक, सामाजिक-सांस्कृतिक व प्राकृतिक समेत सभी प्रकार की क्षतिपूर्तियों की गणना कर मुआवजा तय किया जाय।
20-एक किलोवाट से 100 किलोवाट तक पनबिजली परियोजनाओं के लिए केंद्रीय मदद के प्रस्ताव पर राज्य सरकार की लापरवाही निंदनीय है। जनमंच इसे पहाड़ विरोधी अफसरों की साजिश करार देता है। केंद्र की इस योजना पर कार्रवाई करते हुए तत्काल ग्राम पंचायतों, सहकारी संस्थाओं से तत्काल आवेदन मांगे जांय।
21- विष्णुप्रयाग पनबिजली प्रोजेक्ट से प्रभावित चाईं गांव के लोगों को जेपी समूह एक सर्वांगीण पुनर्वास पैकेज दे। राज्य सरकार जेपी ग्रुप को मूलधारा में 26 प्रतिशत जल प्रवाह बनाए रखने का आदेश जारी करे।
22- टिहरी के विस्थापितों और प्रभावितों को दीर्धकालीन सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा देने के लिए 800 करोड़ रु0 का फंड तत्काल स्थापित किया जाय। टीएचडीसी अपने लाभ का 10 प्रतिशत और राज्य सरकार बिजली राॅयल्टी का पचास प्रतिशत इस फंड में हर साल जमा करे। प्रतापनगर, घनसाली, जाखणीधार के लोगों को हर साल यात्री किराया अनुदान दिया जाय।
23 - पनबिजली प्रोजेक्टों वाले हर इलाके में इसी तर्ज पर एक सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा कोष स्थापित किया जाय।
24- गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए कांवड़ियों के उत्तरकाशी के ऊपर गंगोत्री और गोमुख जाने पर प्रतिबंध लगाया जाय तथा हर तीर्थयात्री व पर्यटक पर पर पचास रु0 पर्यावरण उपकर लगाया जाय।
25- गंगा में सर्वाधिक प्रदूषण करने वाले उत्तरकाशी के ऊपर उजेली, गंगोत्री, भोजवासा और तपोवन में स्थापित सभी आश्रमों को हटाया जाय।
26- मुनिकीरेती, ऋषिकेश और हरिद्वार के सभी आश्रमों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तहत लाया जाय तथा इन पर सुख सुविधा कर और पर्यावरण उपकर लगाया जाय। सभी आश्रमों को व्यावसायिक दरों पर बिजली दी जाय।
27- गंगा को गंग नहर से मुक्त कराया जाय। प्रदूषण से निपटने के लिए हरिद्वार में गंगा की मूलधारा नीलधारा में तत्काल 26 प्रतिशत पानी छोड़ा जाय।
28- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरुप गंगा से 200 मीटर से कम दूरी पर स्थित सभी आश्रमों और होटलों को बलपूर्वक हटाया जाय।
29- गंगा में प्रदूषण करने के कृत्य को गैर जमानती अपराध की श्रेणी में लाया जाय। इसका उल्लंघन करने वाले व्यावसायिक, औद्योगिक और स्वयंसेवी संस्थानों के लाइसेंस या पंजीकरण रद्द किए जांय।
30- वनपोषित नदियों के जलागम प्रबंधन और जल संरक्षण के लिए केंद्र सरकार 15000 करोड़ रु0 का कोष स्थापित करे।
31- उत्तरकाशी से गंगोत्री तक इको सेंसेटिव जोन घोषित करने के केंद्र सरकार के फैसले को उत्तराखंड जनमंच संघीय ढ़ांचे पर हमला मानता है और इसे तत्काल वापस लेने की मांग करता है।
32- उत्तराखंड जनमंच केंद्र सरकार गंगा और उसकी सहायक नदियों के प्रबंधन,नियंत्रण और स्वामित्व के मामले में केंद्र सरकार के किसी भी प्रकार के दखल का विरोध करता है और इसे संघीय ढ़ांचे पर हमला मानता है।